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नई दिल्ली/भोपाल। मध्यप्रदेश के चर्चित पेड न्यूज मामले पर बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय की पीठ ने भारत निर्वाचन आयोग से दस्तावेज पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 26 अक्टूबर को होगी।
प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा को निर्वाचन आयोग ने पराजित उम्मीदवार राजेंद्र भारती की शिकायत पर पेड न्यूज का दोषी पाते हुए तीन साल के लिए चुनाव लड़ने का अयोग्य ठहराया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्वाचन आयोग द्वारा 23 जून 2017 को तीन साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराए गए राज्य के जनसंपर्क मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा के मामले की सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर सुनवाई कर रहा है।
भारती की ओर से सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा, वरुण चोपड़ा और प्रतीप बिसौरिया ने अपना पक्ष रखा। बिसौरिया के मुताबिक, दो सुनवाई के दौरान मिश्रा की ओर से उनके अधिवक्ताओं ने दो पेशियों में अपना पक्ष रखा, उसके बाद भारती की ओर से दो पेशियों में पक्ष रखा गया।
बिसौरिया के मुताबिक, रवीन्द्र भट्ट और सुनील गौड़ की खंडपीठ ने चुनाव आयोग से दस्तावेज पेश करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 26 अक्टूबर को होगी।
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ज्ञात हो कि नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में खर्च का सही ब्योरा न देने और पेड न्यूज प्रकाशित कराने की इसी चुनाव के पराजित उम्मीदवार राजेंद्र भारती ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी। इस मामले में आयोग ने आरोप प्रमाणित होने पर चुनाव के नौ साल बाद 23 जून, 2017 को मिश्रा को तीन साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया था।
मालूम हो कि चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ मिश्रा ग्वालियर उच्च न्यायालय गए और एक अन्य याचिका मुख्य पीठ जबलपुर में लगाई गई। इस पर सुनवाई से पहले ही भारती ने इस प्रकरण को अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की अपील की। भारती की अपील पर मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित हुआ और एकल पीठ ने आयोग के फैसले को सही पाया।
एकल पीठ के फैसले के खिलाफ मिश्रा सर्वोच्च न्यायालय गए, जहां से दिल्ली उच्च न्यायालय को खंडपीठ के जरिए सुनवाई के निर्देश दिए गए। साथ ही मिश्रा को अंतरिम राहत मिल गई। फिलहाल उन्हें स्थगन मिला हुआ है।
चुनाव आयोग के फैसले के बाद लगभग ढाई माह से यह मामला न्यायालय में लंबित है। वर्तमान में मिश्रा अपने मंत्री और विधायक पद की तमाम जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं।
आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए मिश्रा ने सर्वोच्च न्यायालय से विधानसभा के सत्र में हिस्सा लेने के साथ राष्ट्रपति पद के चुनाव में मतदान की अनुमति मांगी थी, मगर उन्हें राहत नहीं मिली थी। परिणामस्वरूप वह विधानसभा सत्र में हिस्सा नहीं ले पाए थे और उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में मतदान का अवसर भी नहीं मिला था।
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