केजरीवाल जब से दिल्ली की सत्ता में आए हैं दिल्ली सरकार के अधिकार पर केन्द्र की तरफ से हस्तक्षेप को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं।
नई दिल्ली। दिल्ली सरकार केन्द्र के साथ अपने अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रही है। देश की शीर्ष अदालत ने यह प्रथम दृष्टया साफ भी कर दिया है कि दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है। ऐसे में बाकी राज्यों की तुलना दिल्ली के साथ नहीं की जा सकती है और पहली नज़र में राज्यपाल के अधिकार राज्य सरकार से ज्यादा है। यानि, कोर्ट की तरफ से दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए एक झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
तो वहीं, दूसरी तरफ आज उस मुख्यमंत्री के बारे में चर्चा करना वाजिब है जो दिल्ली में सबसे लंबे समय तक बिना किसी विवाद के मुख्यमंत्री रहीं और दिल्ली की पूरी तस्वीर बदल कर रख दी। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिल्ली की पिछली शीला दीक्षित सरकार की।
15 साल तक बिना विवाद किया काम
शीला दीक्षित पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री 1998 में बनीं और लगातार 15 वर्षों तक बिना किसी विवाद के सरकार चलाई। दैनिक जागरण से खास बातचीत में वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार शीला के कामकाज को बेहतर बताते हुए कहा कि ये बात अलग है कि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे लेकिन अगर दिल्ली के विकास की बात करें तो इन पन्द्रह वर्षों के दौरान यहां पर कई काम हुए। और उसकी वजह थी शीला की राजनीतिक समझ। इतना ही नहीं, चूंकि उनके पति ब्यूरोक्रेट थे लिहाजा उनको दोनों ही चीजों की अच्छी समझ थी।
केन्द्र की अटल सरकार के साथ बिठाया बेहतर तालमेल
शिवाजी सरकार बताते हैं कि शीला दीक्षित जिस वक्त दिल्ली की सत्ता में आयी थीं तो उस वक्त केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। उसके बावजूद उन्होंने मतभेद को कभी सार्वजनिक तौर पर सामने नहीं आने दिया। वे बताते हैं कि जब केन्द्र और दिल्ली में दो अलग सरकार हो तो मतभेद होना लाजिमी है। लेकिन, वो लोगों के सामने ना आए और काम भी हो जाए ये कौशल शीला दीक्षित में था। लिहाजा, उन्होंने दिल्ली में कई काम कराए, जैसे- मेट्रो, सड़क, यमुना पर पुल का निर्माण, एलिवेटेड कॉरिडोर, कॉमनवेल्थ गेम्स का सफल आयोजन, गैस पावर स्टेशन और सीएनजी बसों को चलाने जैसे महत्वपूर्ण काम।
केन्द्र से केजरीवाल का मतभेद सार्वजनिक क्यों
दरअसल, केजरीवाल जब से दिल्ली की सत्ता में आए हैं दिल्ली सरकार के अधिकार पर केन्द्र की तरफ से हस्तक्षेप को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पिछले राज्यपाल नजीब जंग से उनकी लड़ाई सबने देखी। लेकिन, अनिल बैजल जब राज्यपाल बनकर आए उसके बावजूद भी उनकी कटुता राज्यपाल से कम नहीं दिखी। शिवाजी सरकार इस बड़ी वजह अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक तौर पर अपरिपक्व होना मानते हैं। उनका कहना है कि चूंकि केजरीवाल का राजनीति से दूर तक कोई नाता नहीं था इसकी वजह से जब वे अचानक दिल्ली के सीएम बने तो ये समस्या उनके सामने आयी।
पहले कभी नहीं दिखा दिल्ली में ऐसा दंगल
शिवाजी सरकार ने बताया कि केजरीवाल से पहले और भी दिल्ली के कई मुख्यमंत्री हुए जैसे मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज लेकिन इस तरह की राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच जंग कभी देखने को नहीं मिली थी। उन्होंने बताया कि चूंकि दिल्ली सरकार को काम कराने के लिए एक मात्रा रास्ता है बातचीत का। ऐसे में जब तक मैनेजमेंट के स्तर पर बातचीत नहीं होगी और राजनीतिक गतिरोध बना रहेगा तब तक काम प्रभावित करता रहेगा। ऐसे में दिल्ली में अगर सरकार चलानी है तो जो भी सीएम हों चाहे वो वर्तमान हों या फिर भविष्य के उन्हें राजनीतिक समझ होनी चाहिए।