क्यों पड़ता है दिल का दौरा

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वक्त से पहले समय चक्र से भी आगे निकलने की होड़, अपर्याप्त विश्राम, अनियमित भोजन, आटोमेटाइजेशन अर्थात् हर चीज में स्वयंचालन के प्रवेश से शारीरिक श्रम के हृस और अत्यधिक तनाव के भीतर जी रहे लोगों में उन सामान्य शारीरिक और मानसिक मूल्यों का हृास हो रहा है जो हमारी काया को स्वस्थ और स्वाभाविक रखने में सहायक होते हैं।

इसी व्यवस्था की देन है हृदय रोग, जिसके मरीजों की संख्या दिन-दूनी, रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है। आंकड़ों के अनुसार आज संसार भर में मृत्यु के कारणों की फेहरिस्त में इसका नाम सबसे ऊपर है।

हृदय की धमनी के भीतर किसी भी तरह का अवरोध उत्पन्न होने पर हृदय की रक्त पूर्ति में बाधा उत्पन्न हो जाती है और दिल का दौरा पडऩे की आशंका पैदा हो जाती है। यूं तो इन धमनियों में अवरोध उत्पन्न करने के लिये अनेक परिस्थितियां उत्तरदायी होती हैं मगर सबसे आम वजह होती है-धमनियों के भीतर वसा की परत जमना।

वसा की परत के जमाव की वजह से दीवारें असमतल होकर कहीं-कहीं मोटी हो जाती हैं और इन स्थानों पर वह सख्त और खुरदरी भी हो जाती हैं। धमनी के भीतर का दायरा कुछ संकीर्ण हो जाता है। यह रोग की प्रारंभिक अवस्था है, जिसमें मरीज में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। इसके बाद भी अगर धमनियों में वसा का जमाव पूर्ववत जारी रहा तो धमनी की दीवार और मोटी हो जाती है तथा धमनी का व्यास कम हो जाता है। इस स्थिति में हृदय को रक्त की आपूर्ति आंशिक मात्रा में होने लगती है। इसी कारण जब व्यक्ति शारीरिक परिश्रम (सीढिय़ां चढऩा, दौडऩा, दूर तक चलना आदि) करता है तो व्यक्ति को शारीरिक परिश्रम के लिए रक्त की अतिरिक्त जरूरत पड़ती है जो उसे मिल नहीं पाता है। फलस्वरूप हृदय की मांसपेशियों में जोर से सिकुडऩ होती है और छाती में दर्द उठ जाता है। इस दर्द को हृदयशूल या एंजाइना पेक्टारिस कहा जाता है।

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दिल के दौरे की उन्नत अवस्था तब उत्पन्न होती है, जब धमनी की दीवार वसा की परतों से पूर्णत: अवरूद्ध हो जाती है और हृदय को रक्त मिलना बिल्कुल बंद हो जाता है। रोगी की छाती में विश्राम के समय अचानक तीव्र पीड़ा होने लगती है और घबराहट होना, पसीना आना, चक्कर आना, मितली और उल्टी आना प्रारंभ हो जाता है।

यूं तो प्रौढ़ावस्था अर्थात् पैंतालीस से साठ वर्ष के बीच की आयु के व्यक्तियों में इस बीमारी की संभावना सर्वाधिक होती है मगर कम उम्र के लोग भी इसका शिकार हो रहे हैं। माता-पिता में से किसी एक को भी अगर दिल का दौरा पड़ चुका हो तो उनकी संतानों में भी कम उम्र में ही यह उत्पन्न हो सकता है।

दिल के दौरे का शिकार अधिकांशत: पुरूष ही होते हैं परन्तु यदि स्त्रियों में मधुमेह या उच्च रक्तचाप की बीमारियां होती हैं तो उनमें भी यौवनावस्था में ही दिल का दौरा पड़ सकता है। सामान्यत: स्त्रिायों में रजोनिवृत्ति के पहले दिल का दौरा नहीं पड़ता। उच्च रक्तचाप की मौजूदगी दिल का दौरा उत्पन्न करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारण होता है। उच्च रक्तचाप जितना अधिक होता है, दिल का दौरा पडऩे की संभावना उतनी ही अधिक होती है।

मधुमेह या डायबिटीज के मरीजों में दिल का दौरा पडऩे की संभावना दुगुनी हो जाती है। फिर यह उम्र का लिहाज भी नहीं रखता। अगर युवतियों में भी मधुमेह की बीमारी होती है तो दिल का दौरा पडऩे की आशंका चार गुना बढ़ जाती है। मानसिक तनाव इस रोग का जन्मदाता हो सकता है। अवसाद, संत्रास या त्रासदी उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में दिल का दौरा पडऩे का भय बना रहता है। धूम्रपान और दिल के दौरे की आपस में गाढ़ी दोस्ती है। बीड़ी, पाइप या सिगार के व्यसन से सिगरेट का शौक अधिक घातक है। तम्बाकू चबाना, सूंघना व मंजन करना दिल के दौरे की संभावना को बढ़ा देता है। किसी करीबी व्यक्ति की मृत्यु की सूचना, व्यवसाय में अचानक भारी क्षति, कानूनी कार्रवाई भी इसका कारण बनता है।

औसत से अधिक वजन वाले मोटे व्यक्तियों में दिल का दौरा पडऩे की संभावना दुगुनी हो जाती है। मक्खन, घी, मलाई, वनस्पति, घी, नारियल या पाम का तेल, मांस और अण्डे की प्रचुरता एवं शक्करयुक्त व्यंजनों का नियमित सेवन भी दिल के दौरे का कारण बन सकता है। दिल के दौरे से बचने के लिए वजन पर नियंत्राण करना आवश्यक है। रक्त की चर्बी की मात्रा पर खान-पान से नियंत्राण रखें। प्रतिदिन टहलने की आदत डालकर, व्यायाम करके, आहार में नमक की मात्रा को कम करके इस पर काबू पाया जा सकता है। विज्ञान के आधुनिक साधनों का उपयोग अवश्य कीजिए किंतु शारीरिक श्रम से दूर मत होइए। हृदय रोग आधुनिकता की देन है अत: जीवन को सुखमय बनाने के लिए आधुनिकता से बचे रहिए।

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