बिहार देश में नम्बर 1,चीफ जस्टिस बी पी सिन्हा का कोई नहीं तोड़ पाया रिकॉर्ड
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22 मार्च बिहार का जन्म दिन है। 22 मार्च 1912 को बिहार अलग प्रांत बना था। 2010 से 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। बिहार का गौरवशाली अतीत रहा है।
आजाद भारत के नवनिर्माण में बिहार की कई विभूतियों का अहम योगदान रहा है। युवा पीढ़ी, अपनी महान विभूतियों से रू-ब-रू होकर आत्मगौरव का अनुभव कर सकती है।
भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा पहले बिहारी थे जो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि वे सबसे अधिक दिनों तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। वे अक्टूबर 1959 से 31 जनवरी 1964 तक इस पद पर रहे। अभी तक कोई भी मुख्य न्यायाधीश इतने अधिक समय तक इस पद पर नहीं रहा है। इस लिहाज से एक बिहारी सपूत का रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है।
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भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा का जन्म भोजपुर (शाहाबाद) जिले के बड़हरा प्रखंड के गजियापुर गांव में 1 फरवरी 1899 को हुआ था। वे पढ़ने में बचपन से ही बहुत तेज थे। आरा जिला स्कूल से पढ़ाई कर वे पटना यूनिवर्सिटी में दाखिल हुए। बीए और एमए की परीक्षा में उन्होंने टॉप किया। फिर वे पटना लॉ कॉलेज पहुंचे। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया। जल्द ही वे पटना हाईकोर्ट के नामी वकील हो गये। कुछ दिनों तक पटना लॉ कॉलेज में शिक्षक भी रहे।
1943 में उन्हें पटना हाईकोर्ट का जज बनाया गया। 1951 में भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ का प्रधान न्यायाधीश बनाया गया। तीन साल बाद वे सुप्रीम कोर्ट का जज बने। 1959 में वे अपने करियर की सबसे बड़ी ऊंचाई पर पहुंचे। उन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। यह बिहार के लिए बड़े गौरव की बात थी। गांव में पढ़ा लिखा एक साधारण परिवार का व्यक्ति देश के इतने बड़े पद पर पहुंचा, इससे आम आदमी को आगे बढ़ने की हिम्मत मिली।
सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनने के बाद भी भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा का रहन-सहन बहुत सादगीपूर्ण था। दिखावा और चकाचौंध से वे विल्कुल दूर थे। उनका गांव गजियापुर गंगा के किनारे था। बचपन से वे गंगा नदी में स्नान करते रहे थे। मां गंगा से उन्हें बहुत लगाव था। इस लिए चीफ जस्टिस रहने के समय भी जब वे गंगातट पर जाते थे तो बिना स्नान किये नहीं रहते। अपने बच्चों की परवरिश को लेकर वे बहुत सतर्क रहे। भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा के पुत्र और पौत्र भी सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे। यानी उनकी तीन पीढ़ियां बिहार का नाम रौशन करती रहीं।
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