शिवराज पर भारी ‘बेरोजगारी’ फैक्टर, प्रतिष्ठा की लड़ाई में हारी भाजपा
मध्य प्रदेश के बैतूल में नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को तगड़ा झटका दिया है. इस बार शिवराज फैक्टर बैतूल में नहीं चल सका.
हालांकि, तीन में से दो निकायों पर बीजेपी जीती लेकिन सारनी नगर पालिका में निर्दलीय प्रत्याशी ने बड़ा उलटफेर करते हुए बीजेपी को शिकस्त देकर सनसनी फैला दी. यहां कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाली आशा महेंद्र भारती ने बीजेपी की आरती झरबड़े को 3778 मतों से हरा दिया.
इस क्षेत्र में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने धुंआधार प्रचार किया था और बीजेपी के लिये ये सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई थी.
बैतूल की सारनी नगरपालिका मध्यप्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी नगरपालिका है. यहां पिछले दस साल से बीजेपी काबिज थी. इस बार भी सीएम शिवराज सिंह चौहान ने यहां बीजेपी को जिताने के लिये जमकर मेहनत की थी लेकिन नतीजा उलटफेर भरा निकला.
यहां कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव में उतरी आशा महेंद्र भारती ने बीजेपी की आरती झरबड़े को 3778 के बड़े अंतर से मात दे दी. जीत के बाद आशा के समर्थकों का कहना है कि ये उनकी जीत से ज्यादा सीएम की हार है.
‘बेरोजगारी’ फैक्टर भारी
माना जा रहा है कि सारनी में सतपुड़ा पावर हाउस की बंद होती यूनिटों और बढ़ती बेरोजगारी ने अपना असर दिखाना शुरु कर दिया है. सीएम के तमाम वादों के बावजूद मतदाताओं का भाजपा के खिलाफ जाना सत्तारूढ़ पार्टी के लिए खतरे की घंटी है.
सारनी में मिली करारी हार के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं की जुबान खुली और उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि प्रत्याशी के चयन में गलती हुई और इसके बाद अंदरूनी कलह को शांत करने में देर हो गई जो हार की वजह बनी.
आठनेर में बमुश्किल जीती भाजपा
वहीं आठनेर में भी बीजेपी मात्र 46 मतों से जीत सकी. जबकि सीएम ने यहां भी धुआंधार रोड शो किया था और जीत मिलने पर करोड़ों की सौगातें देने का वादा किया था.
जहां नहीं गए शिवराज,वहां भाजपा की जोरदार जीत
केवल चिचोली नगरपरिषद में बीजेपी प्रत्याशी संतोष मालवीय ने कांग्रेस को 2136 मतों से हराया. जबकि चिचोली नगर परिषद में सीएम चुनाव प्रचार के लिये नहीं गए. लेकिन यहां बीजेपी प्रत्याशी संतोष मालवीय ने एकतरफा जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस के राहुल पटेल को 2136 मतों से हरा दिया.
अध्यक्ष पद के अलावा सारनी ,आठनेर और चिचोली में पार्षद पदों पर भी कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों ने कुछ सीटें हासिल की हैं जो सत्ताधारी दल के लिए अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले कतई अच्छा संकेत नहीं है.