काफ़िर की बेटी को प्यारे नबी ने दुपट्टा देने को कहा……एक बार ज़रूर पढ़ें
आज हम आपके सामने एक बड़ा ही खूबसूरत वाक्या शेयर कर रहे हैं…
हातिम ताई की बेटी कैद होकर बारगाह रिसालत में आई और थोड़ा सर से दुपट्टा उतर गया। सर के कुछ बाल या एक बालनज़र आ रहा था।
आप सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम ने उमर रज़िअल्लाहु अंहू को कहा बेटी के सर पे दुपट्टा दो। उमर रज़िअल्लाह अंहू ने कहा या रसूलल्लाह काफिर की बेटी है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रोकर कहा उमर बेटी, बेटी होती है चाहे काफिर की हो या मुसलमान की।आप अपनी जगह से उठ खड़े हुए और चादर उठाकर बच्ची के सरपर रखी और कहा बेटा मेरे सहाबा आपको कैद करके लाए हैं मेरे पास रहना चाहो तो रहो वापस जाना चाहो तो जा सकती हो वह लड़की कहती है वापस जाना चाहती हूँ।आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप पर मै कुरबान मेरे वालदैन भी कुर्बान आपके फैसलों पर।
आपने साथियों की ड्यूटी लगाई दो दिन और दो रातों के बाद आपके साथी दरवाजे पर पहुंचे दरवाजा खटखटाया। अंदर से अती बिन हातिम यानी हातिम का बेटा बाहर आया जब बहन को गैर महरम साथियों के साथ देखा तो गुस्से में आ गया पहला सवाल बहन को पूछा मुसलमानों का पैगंबरकैसा है? बहन भागकर आगे हुई भाई के मुंह पर हाथ रख कर कहती है.
भाई गलत अलफ़ाज़ मुंह से न निकालो मेरे वालिद भी मेरी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त नहीं कर सकता जो मुहम्मद अरबी ने की है। उसने पूछा यह सहाबी का किरदार कैसा है? कहने लगी नमाज़का वक्त होता था ये नमाज़ पढ़ते थे मैंने उनका चेहरा नहीं देखा उन्होंने मेरा नहीं देखा। गुस्सा ठंडा हो गया कहने लगा अगर मुसलमानों के पैगंबर इतना अच्छा है तो मुसलमान क्यों नहीं हुई। कहने लगी दिल चाहता था मुसलमान हो जाऊँ तो सोचा कहीं भाई जहन्नमी होकर न मर जाए तुम्हें लेने आई हूँ आओ दोनों बहन भाई नबी के कदमों को चूम कर जन्नत की बहारें लूट लें।