जब जाट बोले ‘अल्लाहू अकबर’ और मुस्लिमों ने लगाए ‘हर हर महादेव’ के नारे
बीते साल Uttar Pradesh के Assembly Election के बाद Muzaffarnagar के कुतबा गांव के Vipin Singh Baliyan ने एक प्रशंसनीय फैसला लिया है. बालियान ने सांप्रदायिक दंगों के शिकार हुए सभी मुस्लिम परिवारों के घर जाकर जाटों की तरफ से माफ़ी मांगने का फैसला किया है. बता दें कि साल 2013 में हुए दंगों में उनके गांव के 55 जाट भी शामिल थे, जिनपर हत्या समेत 9 अलग-अलग केस दर्ज हैं.
8 सितम्बर 2013 की सुबह कुतबा में सांप्रदायिक हिंसा फ़ैल गई थी, जिसमें स्थानीय युवकों के एक समूह ने 8 मुसलामानों को मार दिया था. जिसके बाद स्थानीय मुसलामानों को पलायन करना पड़ा.
बालियान ने मुताबिक, “मैंने अख्तर हसन के घर जाने का फैसला किया, जो कुतुबा के मुसलमानों के बीच एक अहम नाम है. मैं वहां माफ़ी मांगने के लिए गया था. पहली बार जब मैं वहां गया तो मुसलमान इकठ्ठा होकर मुझे गालियां देने लगे और दंगे से जुडी बातें दोहराने लगे.”
उन्होंने बताया, “जाटों ने उनके साथ जो सलूक किया, उसके लिए उन्होंने मुझे अपमानित करना शुरू कर दिया. मैंने न तो प्रतिक्रिया दी और न ही अपने बचाव का प्रयास किया. मैंने अपने जाट अहंकार को दरवाजे पर छोड़ दिया और उन्होंने जो भी कहा वह सब कुछ चुपचाप सुन लिया.”
बल्यान ने बताया कि अख्तर के साथ उनकी पहली बैठक विफल रही. लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी और वह एक बार फिर वहां गए. लेकिन जब तीसरी बार जाने में भी कुछ सकारात्मक नतीजे नहीं मिले तो उनकी आशा टूटने लगी. लेकिन एक दिन कुछ अप्रत्याशित हुआ.
उन्होंने कहा, “तीसरी बैठक के बाद, मैं निराश होकर घर लौट आया. फिर उसी शाम अख्तर ने मुझे फोन किया. उन्होंने बताया कि कुतबा के एक मुस्लिम लड़की को बारा बस्ती के स्थानीय मुस्लिम लड़के परेशान कर रहे हैं. उन्होंने जाटों से मदद मांगी, ताकि उन अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस पर दबाव पड़े. जाटों ने तय किया कि भले ही वह मुस्लिम हों, लेकिन कुतुबा की बेटी की मदद करना उनका कर्तव्य है. हमने पुलिस थाने का घेराव किया और आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए उन पर दबाव भी बनाया.”
उस घटना ने तो जैसे मामले को नई उर्जा दी और बालियान को ‘शांति प्रक्रिया’ के साथ आगे बढ़ने का एक मौका भी दे दिया. लेकिन सबसे पहले मुसलमानों के विश्वास को वापस जीतना ज्यादा महत्वपूर्ण था. कुतबा के जाट दोषी थे, लेकिन काकरा गांव के जाटों ने अपने बेटों को मुस्लिम दंगाइयों के हाथों खो दिया. इसलिए कुतबा के जाटों ने फैसला लिया वे पहले मुसलमानों के खिलाफ केस वापस ले लेंगे.
काकरा के जाट सोहनवीर बालियान कहते हैं कि हमारे जाट बेटों को मार दिया गया था लेकिन फिर भी हम बारा बस्ती की महापंचायत में गए थे. जो कि अपने आप में एक अभूतपूर्व प्रयास था.
महापंचायत में सोहनवीर ने मंच से सभी जाटों को ‘अल्लाहू अकबर’ (अल्लाह महान है) का उच्चारण करने के लिए कहा, फिर उन्होंने मुसलमानों से ‘हर हर महादेव’ का उच्चारण करने के लिए आग्रह किया. वहां मौजूद सभी लोगों को उनकी बातों को मानता देख सभी हैरान थे.
सोनवीर ने कहा, “जाट और मुसलमान सदियों से दोस्त हैं, लेकिन मैंने ऐसा कभी नहीं देखा है. मैंने कभी भी जाटों को अल्लाहू अकबर और मुस्लिमों को ‘हर हर महादेव’ कहते नहीं सुना है.”
शकीर अली जो कि वहां के स्थानीय जमींदार हैं, ने कहा कि हम सभी ने हर हर महादेव इस्लामी मंत्र नहीं है लेकिन फिर भी हमने इसका उच्चारण किया.
स्थानीय चौधरी के पुत्र चैनपाल सिंह ने शकीर अली के साथ मंच ले लिया और दोनों ने अपने समुदायों की ओर से माफी की मांग की. चैनपाल ने कहा कि हम हाथ जोड़ते हैं, गलती तो हमारी थी हमें माफ़ कर दीजिये.
रिपोर्ट के अनुसार, Uttar Pradesh के Chief Minister Yogi Adityanath ने उचित परामर्श के बाद इस संबंध में सभी संभावित मदद के लिए नेताओं को आश्वासन दिया है. कुछ दिन पहले, Yogi Government ने Political रूप से प्रेरित 20,000 मामलों को वापस लेने का फैसला किया था.
एक अन्य कार्यकर्ता का कहना है कि साल 2014 और फिर 2017 में जाटों को मूर्ख बनाया गया. उन्होंने कहा कि जब तक जाट जाट है तब तक जाट की ठाठ है. बीजेपी ने कुछ वक्त के लिए जाटों को हिन्दू बना दिया था.
विपक्षी दंगों के आरोपी जाटों के लिए बीजेपी के प्रयासों से बेहिचक, विपिन बालियान का कहना है कि उनकी ये महापंचायत जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि हम पहले से ही कुतबा, काकरा और पुरबल्यान में हुए संघर्षों को हल कर चुके हैं. अब हम लिशार, फुगाना, लाख, मोहम्मदपुर रायसिंह और कवल गांवों के जाटों और मुसलमानों के लिए इसे जारी रखेंगे. जाट और मुसलमान, एक बार फिर, एकजुट हैं. बाबा टिकैत (महिन्दर सिंह टिकैत) के दिन वापस आ रहे हैं.
शकीर अली गर्व के साथ कहते हैं कि हाल ही में उन्होंने अपने बेटे के वलीमा (शादी का रिसेप्शन) का आयोजन गांव में किया था. और उस कार्यक्रम में मुसलमानों की तुलना में हिंदू मेहमान ज्यादा थे.