स्कॉर्पीन-क्लास की पहली सबमरीन 2 महीने में नेवी के जंगी बेड़े में हो सकती है शामिल
मुंबई. स्कॉर्पीन-क्लास की पहली सबमरीन ‘कलवारी’ अगले 2 महीनों में नेवी के जंगी बेड़े में शामिल हो सकती है। इसे दुनिया की सबसे घातक सबमरीन (पनडुब्बी) में से एक माना जा रहा है। 21 सितंबर को मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDSL) कलवारी को नेवी को सौंप चुकी है। कहा जा रहा है कि कलवारी इंडियन नेवी के लिए मील का पत्थर साबित होगी। इसके मिलने से देश की अंडरवाटर फाइटिंग फोर्स की ताकत काफी बढ़ गई है। भारत ने ऐसी 6 सबमरीन का ऑर्डर दिया था, कलवारी इसमें पहली है।
जल्द ही अपना काम शुरू कर देगी कलवारी…
– न्यूज एजेंसी के मुताबिक वाइस एडमिरल गिरीश लूथरा ने मंगलवार को बताया कि कलवारी को नवंबर-दिसंबर में कमीशंड किया जा सकता है। इससे पहले, नेवी के एक सीनियर ऑफिशियल ने कहा था, “ये सबमरीन जल्द ही अपना काम करना शुरू कर देगी।”
– MDSL के एक ऑफिशियल ने 21 सितंबर को कहा था, “हमने नेवी को स्कॉर्पीन क्लास की पहली सबमरीन सौंप कर इतिहास लिख दिया है।” भारत में स्कॉर्पीन-क्लास की ऐसी 5 और सबमरीन तैयार की जाएंगी।
मार्च में इससे हुआ था एंटीशिप मिसाइल का टेस्ट
– नेवी ने इसी साल 2 मार्च को अरब सागर में ‘कलवारी’ से एंटीशिप मिसाइल का टेस्ट किया था। स्कॉर्पीन क्लास की सबमरीन से पहली बार मिसाइल दागी गई थी। टेस्ट कामयाब रहा था। मिसाइल ने समंदर की गहराई से सतह पर टारगेट को हिट किया।
– तब डिफेंस मिनिस्ट्री ने कहा था, ”देश में बनी स्कॉर्पीन क्लास की पहली सबमरीन के लिए एंटीशिप मिसाइल का टेस्ट मील का पत्थर साबित होगा। इससे समंदर में नेवी की ताकत बढ़ेगी। ये मिसाइल समुद्री सतह पर दुश्मन के वॉरशिप को तबाह करने की ताकत रखती है।”
मछली से लिया गया नाम
– कलवारी नाम एक प्रकार की शार्क मछली से लिया गया है। इस मछली को टाइगर शार्क कहते हैं। मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDSL) के चेयरमैन और एमडी कमोडोर राकेश आनंद (रिटायर्ड) ने जुलाई में कहा था, “कलवारी को जल्द ही नेवी को सौंपा जा सकता है। इसके सभी ट्रायल बेहद कामयाब रहे हैं।”
क्या है इस सबमरीन की खासियत?
– कलवारी डीजल और इलेक्ट्रिक सबमरीन है। इसमें लगे गाइडेड वेपंस दुश्मन पर सटीक हमला कर उसे पस्त करने की ताकत रखते हैं। टॉरपीडो के साथ हमलों के अलावा इससे पानी के अंदर भी हमला किया जा सकता है। साथ ही सतह पर पानी के अंदर से दुश्मन पर हमला करने की खासियत भी इसमें है। यह डीजल और इलेक्ट्रिक दोनों ही ताकतों से लैस है।
– इस पनडुब्बी को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे किसी भी तरह की जंग में ऑपरेट किया जा सकता है। इस पनडुब्बी में इस तरह के कम्युनिकेशन मीडियम हैं कि दूसरी नेवल टास्क फोर्स के साथ आसानी से कम्युनिकेट किया जा सके।
– यह स्कॉर्पीन सबमरीन हर तरह के वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर और इंटेलिजेंस को इकट्ठा करने जैसे कामों को भी बखूबी अंजाम दे सकती है। इस सबमरीन को वेपंस लॉन्चिंग ट्यूब्स से लैस किया गया है। इसकी वजह से बीच समंदर में ही इस पर हथियार लोड किया जा सकता है और किसी भी पल हमले को अंजाम दिया जा सकता है।
फ्रांस की कंपनी ने मुहैया कराई टेक्नोलॉजी
– कलवारी को प्रोजेक्ट 75 (P-75) के तहत डेवलप किया गया है। इसे मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDSL) ने फ्रांस की कंपनी DCNS के साथ मिलकर तैयार किया है। कलवारी को मुंबई स्थित मझगांव डॉकयार्ड में बनाया गया है। फ्रांसीसी कंपनी ने इसकी डिजाइन तैयार की और इसके लिए टेक्नोलॉजी भी मुहैया कराई। MDSL डिफेंस मिनिस्ट्री के तहत डिफेंस प्रोडक्ट्स तैयार करती है।
– कलवारी को पिछले साल सितंबर में ही नेवी को सौंपा जाना था, लेकिन ट्रायल में देरी के चलते इसकी डेडलाइन लगातार टलती रही।