पैसे नहीं हैं तो भी इस ढाबे पर खा सकते हैं खाना

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यहां बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है, “जिस भाई के पास पैसे नहीं हैं तो खाना फ्री खा सकता है”. ये है पलवल हाइवे स्थित नीलकंठ ढाबा, जहां दिन में न जाने कितने लोग खाली हाथ आते है और भरपेट वापस जाते हैं.

“किसी इंसान की भूख वही समझ सकता है, जो खुद किसी दिन भूखा रहा हो. मैं इस दौर से गुजर चुका हूं, जानता हूं कि कैसा लगता है. इतनी बड़ी दुनिया में करोड़ों लोग हैं, लेकिन आपको एक निवाला खिलाने वाले के लिए निगाहें तरस जाती हैं. यहां हर चीज का मोल है, आप नहीं चुका सकते तो भूल जाइए कि आपको कुछ भी मिलेगा. ये बात मुझे अक्सर कौंधती है.”

ये कहना है नीलकंठ रेस्त्रां के मालिक सुनील तंवर का. सुनील पिछले आठ सालों से जरूरतमंदों को यहां खाना खिला रहे हैं. एनएच-2 पर जाने वाली उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की सारी बसें यहीं रूकती हैं. लोग सफर के बीच खाना खाने के लिए यहीं आते हैं. इस के चलते लोगों में इस रेस्त्रां की अहमियत है.

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जब इस रेस्त्रां के बारे में सुना तो लगा कि किसी साधू-संत को खाना खिला दिया जाता होगा, कोई बड़ी बात तो नहीं. लेकिन वहां जाकर उस मंजर को देखना एक अलग अनुभव था. ट्रक और बस से उतरने वाले कई लोग ऐसे थे, जिन्होंने पैसे न होने का जिक्र किया. उनके लिए थालियां लगाई गईं और भरपेट खाना खिलाया गया. ये लोग कोई साधू-संत नहीं थे, न ही असक्षम बल्कि आपकी और मेरी ही तरह आम आदमी, जो शायद किसी परिस्थिति के चलते परेशान थे.

सुनील कहते हैं “जब मैंने अपने बूते कुछ करने की ठानी तो ऐसा अक्सर होता था जब काम के लिए सफर पर निकलता था. भूख लगती थी लेकिन खाना खाने के लिए पैसे नहीं होते थे. मन भूख से बैचेन रहता था, लेकिन चेहरे पर यही दिखाना होता था कि आप बिल्कुल ठीक हैं. काम की तलाश में एक दिन मथुरा जा रहा था. जैसे-तैसे बस के किराए के पैसे जोड़ पाया. पूरे दिन की दौड़-भाग के बाद थककर चूर हो गया. घर आते वक्त पेट में चूहे दौड़ने लगे. बस मिड-वे पर रूकी और सभी खाने के लिए उतरे. भूख तो मुझे भी लगी थी, लेकिन मजबूरी थी. सो बस में ही बैठा रहा. आंखें मूंदकर सोने की कोशिश की. लगा कि इससे थोड़ी राहत मिलेगी. थोड़ी देर बाद किसी शख्स ने हाथ कंधे पर हाथ रखा, मैंने देखा कि उसके हाथ में खाने की थाली थी. उसने कहा कि तबीयत ठीक नहीं होती तो खाने का दिल भी नहीं करता, पर खाना न खाने से बीमार पड़ जाओगे. उस स्थिति में शायद ना कहना चाहिए था, मगर उस समय मैं इतना बेबस था कि पेट के आगे जोर न चला. वो खाना मुझे उम्रभर याद रहेगा”

रोजमर्रा में हम कई ऐसे लोग देखते हैं जो अच्छे कपड़ों में मुंह पर मुस्कान लिए चलते हैं, पर अंदर क्या कुछ चल रहा है, इसे जानने की हम ज़हमत नहीं करते. सुनील कहते हैं कि “उस दिन मैंने जाना कि सिर्फ खाना भी किसी के लिए बहुत कुछ हो सकता है. उस एक थाली ने मानों मेरा मन ही बदल दिया हो. मैंने जब ये रेस्त्रां खोला को दीवार पर बड़े अक्षरों में लिखवा दिया, जिससे जरूरतमंद संकोच न करें. कई बार ऐसा भी होता है के लोग खाने के बाद बताते हैं कि उनके पास पैसे नहीं है. यकीन मानिए बिल्कुल गुस्सा नहीं आता, उन्हें मुस्कुरा कर विदा कर देते हैं.”

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