शहर के लिए नासूर बना अतिक्रमण

vital problem caused by encroachment in city Samastipur Now
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मुजफ्फरपुर। अतिक्रमण से पूरा शहर कराह रहा है। इससे लगने वाला जाम शहर के लिए नासूर बना है। शहर की सड़को व गलियो को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए अभियान दर अभियान चलाए जा रहे है, लेकिन परिणाम सिफर ही है। जिला एवं निगम प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे अभियान का असर एक दिन भी दिखाई नही पड़ता। अभियान दल के जाने के बाद खाली कराए गए स्थान पर फिर यथास्थिति बहाल हो जाती है। अभियान के नाम पर धन एवं समय की बर्बादी जरूर हो रही है। अभियान मे शामिल वाहनो एवं मजदूरो के भुगतान पर निगम को बड़ी राशि खर्च करनी पड़ रही है। साथ ही अभियान मे लगे दंडाधिकारियो एवं पुलिस बल का समय बर्बाद हो रहा है। अतिक्रमण हटाओ अभियान को लेकर अब सवाल खड़ा किए जाने लगे है।

अभियान की हकीकत

  • प्रमंडलीय आयुक्त के कार्यालय के सामने से अतिक्रमण को हटाने के लिए एक या दो बार नही, साल मे बीस बार अभियान चला पर अतिक्रमण अब भी बरकरार है।
  • स्टेशन रोड से अतिक्रमण हटाने को हर साल आधा दर्जन बार अभियान चलाया गया, लेकिन हालात वैसे ही है।
  • मोतीझील एवं कंपनीबाग मे सड़क पर दुकान सजाने वालो को साल मे आधा दर्जन बार अभियान चलाकर चेताया गया, पर परिणाम शून्य निकला।

अतिक्रमण से हो रही परेशानी

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  • शहर की अधिकतर सड़कें संकीर्ण हो चली हैं जिससे जाम की समस्या बनी रहती है।
  • चौक-चौराहो पर अतिक्रमण के कारण घंटों जाम मे लोग फंसे रहते हैं।
  • नालियो पर अतिक्रमण से नही हो पाती है सफाई, सड़क पर बहता है गंदा पानी
  • सड़क एवं नाला निर्माण होता है बाधित, अतिक्रमण के कारण कई योजनाएं लंबित

कानून है पर अमल के लिए नही

मुजफ्फरपुर : अतिक्रमणकारियो से निपटने को कई कानून हैं। यदि उनको लागू किया जाए तो किसी अभियान की जरूरत नही। अधिकार संस्था के निदेशक अधिवक्ता संजीव कुमार एवं अधिवक्ता धीरज कुमार बताते है कि जिला एवं निगम प्रशासन कानूनी कार्रवाई से बचता है जिससे अतिक्रमणकारियो के हौसले बुलंद हैं।

अतिक्रमण से निपटने वाले कानून इस प्रकार है :-

  • बिहार नगरपालिका अधिनियम की धारा 435 के अनुसार नगरपालिका संपलिा यानि सड़क, गली या पगडंडी का अतिक्रमण या उसमे अवरोध पैदा करना कानूनन अपराध है। ऐसा करने वालो पर एक हजार तक का जुर्माना लग सकता है।
  • धारा 436 के अनुसार जुर्माना नही देने पर कारावास की सजा का प्रावधान है, जो छह माह या उससे अधिक भी हो सकता है।
  • बिहार पब्लिक लैड अतिक्रमण अधिनियम की धारा 3 के तहत जनहित मे किसी भी प्रकार का अतिक्रमण प्रशासन हटा सकता है।
  • हाईकोर्ट के निर्देशानुसार जिला प्रशासन अतिक्रमण हटाए। नही हटाने पर न्यायालय के आदेश की अवमानना मानी जाएगी।
  • अतिक्रमण हटाने के बाद यदि वहां फिर से अवैध कब्जा होता है तो इसके लिए स्थानीय थाना जिम्मेवार होगा।
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